Tuesday, February 6, 2024

 बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,

घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |

है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब |

जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना भी न गुजारा है |

गम कई चुपचाप सह जाता है |

बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,

घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |


                  ✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

Monday, November 28, 2022

फुटपाथ

 


कभी जूता कभी चप्पल कभी सैंडल का मार खाता हूँ |

सह कर हजारों गम सबको मंजिल तक पहुंचता हूँ |

लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |


किसी ने मेरे ऊपर कुछ दुकान सजाया है |

कुछ बेघरों ने मुझे आशियाना बनाया है |

गिर जाए कोई सड़क पर उसको खुद पे बिठाता हूँ |

लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |


कहने को तो हमेशा मै व्यस्त कहलाता हूँ |

खुद के मन की बात अक्सर खुद को ही सुनाता हूँ |

खभी ईंटो कभी पत्थर कभी बालू सा बिखर जाता हूँ |

लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |


                           ✍️आशीष कुमार सत्यार्थी

Saturday, November 19, 2022

क्यों मौन है तूँ



क्यों मौन है तूँ, क्यों गौन है तूँ?

पर खोल जमाना देखेगा |

दे रंग हुनर को अपने तुम,

तेरे संग जमाना देखेगा |

ग़र खो गई तेरी आभा तो,

फिर क्या जमाना देखेगा?

शुलों पे चल, पत्थर पिघला,

दे आकार जमाना देखेगा |

लहरा दे जहाँ में पचम तूँ,

तेरा उमंग जमाना देखेगा |


                  ✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

Monday, July 18, 2022

Motivation

 कह दो इन हवाओं से, तूफान मुझमे भी है |

न टकराये बेवजह, अभी जान मुझमे भी है |

बदल दूँ इतिहास को, ऐसा अरमान मुझमे भी है |

रास्ते मुश्किल है तो क्या हुआ, चलने का गुमान मुझमे भी है |

      

                                ✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

Wednesday, June 8, 2022

परिंदे की पीड़ा


बिलखते परिंदा ने,अपनी पुकार को |

आकर सुनाया है एक कलमकार को ||

आंसू बहाते हुए पँख को पसार कर |

पानी की भीख माँगा आके द्वार पर ||

चुग्गी भर चारा को चुन चुन कर लाया था |

नन्हा सा चूजा को लाकर खिलाया था ||

लौट कर मै आया हूँ पास के तालाब से |

नदियाँ भी भरी हुई थी रेत के सैलाब से ||

सुन्दर सा तन वाले, जाने कैसा मन वाले |

ले गया चूजा का घोंसला उतारकर ||

शायद वो पालेगा, खिलायेगा दानों की निधि पसार कर |

या उसको खायेगा, मुंडी मचार कर ||

मै तो परिंदा हूँ, रह लूंगा, सह लूंगा |

अपनी परिस्थिति को आप देख लें विचार कर ||

कैसे संभालेंगे अपने परिवार को |

बिखते परिंदा ने, अपनी पुकार को |

आकर सुनाया है, एक कलमकार को ||

✍️आशीष कुमार सत्यार्थी



Wednesday, April 20, 2022


 पनघट पे, खेतों में, पेड़ों की छाँव में |

सुना है भारत माता कहीं बसती है गाँव में |

कुट्टी और सानी में, पोखर के पानी में |

महुआ के फूलों की खुशबू सुहानी में |

बकरी के में में और कोयल की कूक में |

खटिया,अलमीरा पुरानी संदूक में |  

                          बारिश के पानी और कागज के नाव में |

सुना है भारत माता कहीं बसती है गाँव में |


   ✍️Ashish Kumar Satyarthi

Saturday, October 30, 2021


पलकें हैं भींगी और आँखें है नम||


होटों पे खुशी और दिल मे है गम |

यूँ तो हर किसी को खुशियाँ बांटने का प्रयत्न करता हूँ|

पर अक्सर अकेले मे उदास रहते है हम।

पलकें है भींगी और आँखे हैं नम||


न कोई गुल है न गुलशन है मेरा,

माँ-बाप ही तो गगन है मेरा ,

पर अक्सर उनसे दूर रहकर गमगीन है हम।

पलकें हैं भींगी और आँखे हैं नम।


 बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल, घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है | है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब | जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना ...