Tuesday, February 6, 2024

 बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,

घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |

है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब |

जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना भी न गुजारा है |

गम कई चुपचाप सह जाता है |

बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,

घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |


                  ✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

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