तलवारें मुझे तलवार माना,
दिलदारों ने दिलदार माना |
मै आईने के तरह खड़ा रहा,
लोगों ने खुद को पहचाना |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल, घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है | है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब | जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना ...