Sunday, December 6, 2020

 

तलवारें मुझे तलवार माना, 

दिलदारों ने दिलदार माना |

मै आईने के तरह खड़ा रहा,

लोगों ने खुद को पहचाना |

✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

 बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल, घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है | है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब | जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना ...