बिलखते परिंदा ने,अपनी पुकार को |
आकर सुनाया है एक कलमकार को ||
आंसू बहाते हुए पँख को पसार कर |
पानी की भीख माँगा आके द्वार पर ||
चुग्गी भर चारा को चुन चुन कर लाया था |
नन्हा सा चूजा को लाकर खिलाया था ||
लौट कर मै आया हूँ पास के तालाब से |
नदियाँ भी भरी हुई थी रेत के सैलाब से ||
सुन्दर सा तन वाले, जाने कैसा मन वाले |
ले गया चूजा का घोंसला उतारकर ||
शायद वो पालेगा, खिलायेगा दानों की निधि पसार कर |
या उसको खायेगा, मुंडी मचार कर ||
मै तो परिंदा हूँ, रह लूंगा, सह लूंगा |
अपनी परिस्थिति को आप देख लें विचार कर ||
कैसे संभालेंगे अपने परिवार को |
बिखते परिंदा ने, अपनी पुकार को |
आकर सुनाया है, एक कलमकार को ||
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
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