पागल
(1)
नफ़रत हो गई है इस दुनिया से,
इसलिए अलग दुनिया बसा रखा है मैने |
लोग तो बेवजह पागल समझ रहे हैं मुझे,
ये तो अपना रूप सजा रखा है मैने |
(2)
न इश्क है मुझे अमीरी से,
न फ़िक्र है मुझे गरीबी की |
ग़म-ख़ुशी, आँसू -हंसी से दूर,
आशियाना बना रखा है मैने |
इसलिए अलग दुनिया बसा रखा है मैने|
(3)
हंसो खूब मेरी बेवक़ूफ़ियत पर,
पर रो पड़ोगे जग की असलियत पर |
ये जो वादे, भरोसा, उम्मीद है न,
इन सब को आज़मा रखा है मैने |
इसलिए अलग दुनिया बसा रखा है मैने |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
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