क्यों मौन है तूँ, क्यों गौन है तूँ?
पर खोल जमाना देखेगा |
दे रंग हुनर को अपने तुम,
तेरे संग जमाना देखेगा |
ग़र खो गई तेरी आभा तो,
फिर क्या जमाना देखेगा?
शुलों पे चल, पत्थर पिघला,
दे आकार जमाना देखेगा |
लहरा दे जहाँ में पचम तूँ,
तेरा उमंग जमाना देखेगा |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
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