Ashish Kumar Satyarthi
Sunday, May 26, 2024
Tuesday, February 6, 2024
Monday, November 28, 2022
फुटपाथ
कभी जूता कभी चप्पल कभी सैंडल का मार खाता हूँ |
सह कर हजारों गम सबको मंजिल तक पहुंचता हूँ |
लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |
किसी ने मेरे ऊपर कुछ दुकान सजाया है |
कुछ बेघरों ने मुझे आशियाना बनाया है |
गिर जाए कोई सड़क पर उसको खुद पे बिठाता हूँ |
लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |
कहने को तो हमेशा मै व्यस्त कहलाता हूँ |
खुद के मन की बात अक्सर खुद को ही सुनाता हूँ |
खभी ईंटो कभी पत्थर कभी बालू सा बिखर जाता हूँ |
लिख दो मेरी पहचान, मै फुटपाथ कहलाता हूँ |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
Saturday, November 19, 2022
क्यों मौन है तूँ
क्यों मौन है तूँ, क्यों गौन है तूँ?
पर खोल जमाना देखेगा |
दे रंग हुनर को अपने तुम,
तेरे संग जमाना देखेगा |
ग़र खो गई तेरी आभा तो,
फिर क्या जमाना देखेगा?
शुलों पे चल, पत्थर पिघला,
दे आकार जमाना देखेगा |
लहरा दे जहाँ में पचम तूँ,
तेरा उमंग जमाना देखेगा |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
Monday, July 18, 2022
Motivation
कह दो इन हवाओं से, तूफान मुझमे भी है |
न टकराये बेवजह, अभी जान मुझमे भी है |
बदल दूँ इतिहास को, ऐसा अरमान मुझमे भी है |
रास्ते मुश्किल है तो क्या हुआ, चलने का गुमान मुझमे भी है |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
Wednesday, June 8, 2022
परिंदे की पीड़ा
बिलखते परिंदा ने,अपनी पुकार को |
आकर सुनाया है एक कलमकार को ||
आंसू बहाते हुए पँख को पसार कर |
पानी की भीख माँगा आके द्वार पर ||
चुग्गी भर चारा को चुन चुन कर लाया था |
नन्हा सा चूजा को लाकर खिलाया था ||
लौट कर मै आया हूँ पास के तालाब से |
नदियाँ भी भरी हुई थी रेत के सैलाब से ||
सुन्दर सा तन वाले, जाने कैसा मन वाले |
ले गया चूजा का घोंसला उतारकर ||
शायद वो पालेगा, खिलायेगा दानों की निधि पसार कर |
या उसको खायेगा, मुंडी मचार कर ||
मै तो परिंदा हूँ, रह लूंगा, सह लूंगा |
अपनी परिस्थिति को आप देख लें विचार कर ||
कैसे संभालेंगे अपने परिवार को |
बिखते परिंदा ने, अपनी पुकार को |
आकर सुनाया है, एक कलमकार को ||
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी
Wednesday, April 20, 2022
पनघट पे, खेतों में, पेड़ों की छाँव में |
सुना है भारत माता कहीं बसती है गाँव में |
कुट्टी और सानी में, पोखर के पानी में |
महुआ के फूलों की खुशबू सुहानी में |
बकरी के में में और कोयल की कूक में |
खटिया,अलमीरा पुरानी संदूक में |
बारिश के पानी और कागज के नाव में |
सुना है भारत माता कहीं बसती है गाँव में |
✍️Ashish Kumar Satyarthi
उठा है जो तूफ़ाँ तो फ़िर आसमां तलक जायेगा | ऊँची पहाड़ी पर चढ़ कर फ़िर उस ढलान तलक जायेगा | पथरीला रास्ता है और सफर बहुत लम्बा है | सोच कर बता ...
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पनघट पे, खेतों में, पेड़ों की छाँव में | सुना है भारत माता कहीं बसती है गाँव में | कुट्टी और सानी में, पोखर के पानी में | महुआ के फूलों की ख...
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पागल (1) नफ़रत हो गई है इस दुनिया से, इसलिए अलग दुनिया बसा रखा है मैने | लोग तो बेवजह पागल समझ रहे हैं मुझे, ये तो अपना रूप...
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हर दर्द मुस्कुरा कर पी रहा हूँ, न जाने कौन सी दुनिया में जी रहा हूँ | पलट कर देखा इतिहास के पन्नों को मैने, ये ज़हर नायाब है जो मै पी रहा...