Sunday, April 5, 2020


ग़म-ए-मुहब्बत बहुत कुछ सिखा जाती है|
उम्मीदों के जलते दिया भी बुझा जाती है |
ग़र हो इतवार अपने मुस्कान पर, 
एक बार किसी बेवफा से मुहब्बत करके देखो |
खिलते ग़ुलाब को भी रुला जाती है |

✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

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