Monday, March 30, 2020

21वीं सदी का गुमनाम आशिक

 देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
 सोचता हूं तू ऑनलाइन आई  तो नहीं|
 जी करता है भेज दूँ कुछ मैसेज,
 लेकिन डरता हूं कहीं पढ़ ले तेरा भाई तो नहीं|
 जब-जब तुम लगाते हो स्टेटस पर अपना पिक,
 सोचता हूं, खुदा ने किसी और को ऐसा बनाया तो नहीं|
 जब कभी फोन करने को जी करता है,
 तब डर लगा रहता है कहीं हो जाए पिटाई तो नहीं|
 आती है यूं हिचकियां जब,
 झट ऑनलाइन आता हूं, सोचता हूं तू ऑनलाइन बुलाई तो नहीं|
 ऑनलाइन रहकर भी जब रिप्लाई नहीं देते हो,
 तब सोचता हूं, कहीं हो गई तू पराई तो नहीं|
 देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
 सोचता हूं तू  ऑनलाइन आई  तो नहीं|

✍️आशीष कुमार सत्यार्थी 

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