बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,
घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |
है नियति का खेल सब, विधि का है मेल सब |
जीवन का यह जो धारा है, उड़े बिना भी न गुजारा है |
गम कई चुपचाप सह जाता है |
बनाकर हर परिंदे को उड़ने के काबिल,
घोंसला अक्सर विरान रहा जाता है |
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी