21वीं सदी का गुमनाम आशिक
देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं|
जी करता है भेज दूँ कुछ मैसेज,
लेकिन डरता हूं कहीं पढ़ ले तेरा भाई तो नहीं|
जब-जब तुम लगाते हो स्टेटस पर अपना पिक,
सोचता हूं, खुदा ने किसी और को ऐसा बनाया तो नहीं|
जब कभी फोन करने को जी करता है,
तब डर लगा रहता है कहीं हो जाए पिटाई तो नहीं|
आती है यूं हिचकियां जब,
झट ऑनलाइन आता हूं, सोचता हूं तू ऑनलाइन बुलाई तो नहीं|
ऑनलाइन रहकर भी जब रिप्लाई नहीं देते हो,
तब सोचता हूं, कहीं हो गई तू पराई तो नहीं|
देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं|
देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं|
जी करता है भेज दूँ कुछ मैसेज,
लेकिन डरता हूं कहीं पढ़ ले तेरा भाई तो नहीं|
जब-जब तुम लगाते हो स्टेटस पर अपना पिक,
सोचता हूं, खुदा ने किसी और को ऐसा बनाया तो नहीं|
जब कभी फोन करने को जी करता है,
तब डर लगा रहता है कहीं हो जाए पिटाई तो नहीं|
आती है यूं हिचकियां जब,
झट ऑनलाइन आता हूं, सोचता हूं तू ऑनलाइन बुलाई तो नहीं|
ऑनलाइन रहकर भी जब रिप्लाई नहीं देते हो,
तब सोचता हूं, कहीं हो गई तू पराई तो नहीं|
देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को,
सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं|
✍️आशीष कुमार सत्यार्थी