Wednesday, June 8, 2022

परिंदे की पीड़ा


बिलखते परिंदा ने,अपनी पुकार को |

आकर सुनाया है एक कलमकार को ||

आंसू बहाते हुए पँख को पसार कर |

पानी की भीख माँगा आके द्वार पर ||

चुग्गी भर चारा को चुन चुन कर लाया था |

नन्हा सा चूजा को लाकर खिलाया था ||

लौट कर मै आया हूँ पास के तालाब से |

नदियाँ भी भरी हुई थी रेत के सैलाब से ||

सुन्दर सा तन वाले, जाने कैसा मन वाले |

ले गया चूजा का घोंसला उतारकर ||

शायद वो पालेगा, खिलायेगा दानों की निधि पसार कर |

या उसको खायेगा, मुंडी मचार कर ||

मै तो परिंदा हूँ, रह लूंगा, सह लूंगा |

अपनी परिस्थिति को आप देख लें विचार कर ||

कैसे संभालेंगे अपने परिवार को |

बिखते परिंदा ने, अपनी पुकार को |

आकर सुनाया है, एक कलमकार को ||

✍️आशीष कुमार सत्यार्थी



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